महसूस हो रहे हैं यादे फ़ना के झोके,
खुलने लगे हैं मुझपर असरार जिन्दगी के,
वारे अलम उठाया रेंज निशात देता,
यूँ ही नहीं हैं छाये अंदाज बहसी के.
वफ़ा में दिल की सदके जान की नज़रे जफा कर दे,
मुहब्बत में ये लाजिम है की जो कुछ हो फ़िदा करदे
बहे बहरे फना में जल्द या रब लाश बिस्मिल की,
की भूखी मछलियाँ है जौहरे शमशीर कातिल की,
ज़रा संभल कर फुकना इसे ई दागे नाकामी
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजडे हुए दिल से..
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल
(फांसी पे चढ़ने से २४ घंटे पहले का वक्तब्य)
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