Thursday, July 1, 2010
केवल कुरान पढोगे तो कलाम नहीं बनोगे
एक ब्लागर मित्र की कृपा से कुरान पढने का मौका मिला..वास्तव में कुरान दुनिया की महानतम पुस्तकों में से एक है.जिस कुरान की पहली आयात में ही लिखा है-" नहीं है सिवाय अल्लाह के कोई जो प्रशंसा के योग्य है." जो सारे वेदों का निचोड़ है.तो इसके अच्छी पवित्र पुस्तक कौन सी हो सकती है.
पुस्तकों से प्यार है.बचपन से ही पढने की आदत है.पढता रहा........लगातार कुरान को. जब आखिरी आयत पढ़ी तो पता नहीं क्यूँ ऐसा लगा की इसमें कुछ बातें तो ऐसी हैं जो अल्लाह की कदापि नहीं हो सकती.उदहारण के तौर पर- फिर जब हराम के महीने बीत तो फिर मुशरिकों (गैर मुसलमानों)को जहाँ पाओ क़त्ल करो,और पकड़ो,उन्हें घात लगा कर घेरो,
हर जगह उनकी तक में रहो,अगर वो नमाज़ कायम कर लें तो उनको छोड़ दो नहीं तो उनकी उंगलिया और गर्दन काट लो.निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील है.(१०:९:५)
मुझे नहीं लगता की अल्लाह ऐसा हो सकता है.जो सारे जगत का पिता है,जो हमारी रचना, और पालन करने वाला है.उसकी ऐसी सोच कैसे हो सकती है? वो ऐसा सन्देश कैसे भेज सकता है.अल्लाह कैसे कह सकता है की-हे इमान वालों, मूर्तिपूजक नापाक हैं.(१०.९.२८)
कैसे कह सकता है-निस्संदेह मूर्तिपूजक तुम्हारे दुश्मन हैं.-(५.४.१०१)
कैसे कह सकता है-
हे नबी,काफिरों से जिहाद करो.उनको जहन्नम में पहुचाओ.(२४.४१.२७).
हमारा पालनकरता कैसे कह सकता है-
हे इमान वालों,काफिरों को लूटो,लुटा हुए माल को गनीमत समझ कर खाओ.(१०.८.६९)
ऐसी बहुत सी आयतें हैं कुरान की जिनको अगर आप अपनी जिन्दगी में उतर लोगे तो मुझे शक है की आप कलाम बन पाओगे...हाँ अफज़ल गुरु,ओसामा...बनाने के चांसेस अधिक हैं.
क्या हमे इन आयातों को कुरान से निकल नहीं देना चाहिए.क्या ये घृणा और वैनामस्यता फ़ैलाने वाली आयातों को पढ़कर कोई भी मुसलमान दुसरे कौम के लोगों को भाई कहेगा या उससे गले मिलेगा.
मुझे तो नहीं लगता.
कुरान में हर चीज़ हराम है जो मुसलमानों के शिवाय किसी दूसरों से प्रेम करने की बात करते हैं.
हम तो दूसरों के त्यौहार पर बधाई भी नहीं दे सकते इस्लाम में-
क्यूंकि इसका मतलब है की दुसरे कौम से हमारा प्रेम है.
जब मिस्र जैसे मुस्लिम देश में कुरान की इन आयातों को मदरसों में पढ़ना प्रतिबंधित है...तो हमारे देश में क्यूँ नहीं हो सकता?
इसकी सख्त जरुरत है.हमारे मुसलमान भाईओं को भी थोडा सा कट्टरता से ऊपर उठकर देखना होगा.उन्हें स्मरण करना होगा की अगर दुनिया का कोई दूसरा धर्म पहले से ही इतनी वैमनस्यता फैलता तो इस्लाम का उदय ही न हो पता.
आप के हिसाब से हमारे पूज्यनीय पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम टी गीता के साथ कुरान पढ़ते हैं...इसका मतलब वो मुस्लमान नहीं हैं?
सोच बदोल मेरे प्रिय मुसलमान भाईओं.
दुनिया मंगल की उर बढ़ रही है...और आप आज भी मानते हो की धरी अंडाकार ही.जो गलत है वो गलत है.अँधा वो नहीं होता जिसे दिखे न..अँधा तो वो होता है की जिसे अपनी बुरे नहीं दिखती...
मुसलमान बनो............लेकिन जाकिर नाइक की सोच से ऊपर उठो.खुद भी आप के पास सोचने की क्षमता अल्लाह ताला ने दी है.
सोचो क्या बुरा है...क्या अच्छा है.
कुरान की अच्छैओं को ग्रहण करो....बुराइओं को छोडो...
आपकी कट्टरता का ही नतीजा है की १४०० सालों बाद भी इस्लाम की दुनिया में एक ही छवि बनी हुई है...
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अपनी सोच बदल लें तो दुनिया में शांति आ जाये,जो कि ये चाहते ही नहीं हैं.
ReplyDeleteजब हराम के महीने बीत तो फिर मुशरिकों (गैर मुसलमानों)को जहाँ पाओ क़त्ल करो,और पकड़ो,उन्हें घात लगा कर घेरो,
ReplyDeleteहर जगह उनकी तक में रहो,अगर वो नमाज़ कायम कर लें तो उनको छोड़ दो नहीं तो उनकी उंगलिया और गर्दन काट लो.निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील है
आपने तो आतंकवाद की जड़ ही सामने रखदी वो भी जबरदस्त तरीके से।
क्या हुआ नाराज हो छोटे भाई हमारे यहां आना जाना छोड़ रखा है क्यों?
ReplyDeleteसच का आइना दिखाने वाला कोई तो आया
ReplyDeleteIslam = Sex+Terrorism
-सउदी अरब रुपी चकले मे सैक्सियत (शरियत) के नाम पर मिस्यार ( व्यभिचार) को सरकार की मान्यता प्राप्त है.
उमरा की आड़ में मिस्यार का धंधा फलफूल रहा है.
-इस्लाम अय्याशी (चार निकाह, जन्नत में 72 हूरें) और आतंक (जिहाद) का पाठ पढाता है
-ये लोग अपनी बहनो को भी नहीं छोडते, उनसे निकाह करके बिस्तर में ले जाते हैं
-कोई मुसलमान हिन्दू धर्म की प्रशंसा कर दे तो उसे मजहब से निकाल देते हैं
-हिन्दू धर्म ग्रथों को जलाना, मन्दिरों को तोडना, देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, उनके बारे में अपशब्द बोलना इनकी घृणित मानसिकता का प्रमाण है
- हिन्दुओं को मिटाने या मुसलमान बनाने पर इनको जन्नत रूपी अय्याशी का अड्डा मिलता है
-मुसलमान (ना)मर्दों को बुरका बहुत भाता है, क्योंकी बुरके में छिपकर ये "बहुत कुछ" करते हैं
- मुसलमान फर्जी नामों का बुरका पहनकर भौंकते फिरते रहते हैं
-कुल मिलाकर इस्लाम (ना)मर्दों का मजहब है
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ReplyDeleteसच का बोलबाला, झूठ का मुँह काला-अगर तुम्हारा अल्लाह तुम्हे ये सिखाता है तो मै उसकी बातों को इंकार करता हूँ.और मुझे आशा नहीं की १४५० सालों में जब तुम्हे नहीं सुधर पाया तो वो हमे क्या सिखाएगा.
ReplyDeleteपंडित जी! पूरा कमेन्ट है-
ReplyDeleteकुरान अल्लाह की पुस्तक है, अल्लाह ने जो कुछ कहा है वही कुरान मे है कुरान अल्लाह की पुस्तक है, अल्लाह ने जो कुछ कहा है वही कुरान मे है. कुरान की बात पर संदेह करोगे तो नर्क भोगोगे. ऐसा मुस्लमान मानते हैं. जब मुस्लमान खुद स्वीकार करते हैं की उनका अल्लाह काफिरों का रक्तपात करने, उनकी हत्याएं करने का आदेश देता है. तो फिर आप मुसलमानों के अल्लाह को संत साबित करने पर क्यों तुले हुये हो????????????
बोलो जय श्रीराम
पिछला अधूरा कमेन्ट हटा लेता हूँ
ReplyDelete{महमूद एंड कम्पनी ,मरोल पाइप लाइन ,मुंबई द्वारा हिंदी में प्रकाशित कुरान मजीद से ऊदत } इस्लाम के अनुसार इस्लाम के प्रति इमान न रखने वाले ,व बुतपरस्त( देवी -देवताओ व गुरुओ को मानने वाले काफिर है ) 1................मुसलमानों को अल्लाह का आदेश है की काफिरों के सर काट कर उड़ा दो ,और उनके पोर -पोर मारकर तोड़ दो (कुरान मजीद ,पेज २८१ ,पारा ९ ,सूरा ८ की १२ वी आयत )! 2.....................जब इज्जत यानि , युद्द विराम के महीने निकल जाये ,जो की चार होते है [जिकागा ,जिल्हिज्या ,मोहरम ,और रजक] शेष रामजान समेत आठ महीने काफिरों से लड़ने के उन्हें समाप्त करने के है !(पेज २९५ ,पारा १० ,सूरा ९ की ५ वी आयत ) 3...................जब तुम काफिरों से भिड जाओ तो उनकी गर्दन काट दो ,और जब तुम उन्हें खूब कतल कर चुको तो जो उनमे से बच जाये उन्हें मजबूती से केद कर लो (पेज ८१७ ,पारा २६ ,सूरा ४७ की चोथी आयत ) 4............निश्चित रूप से काफिर मुसलमानों के खुले दुश्मन है (इस्लाम में भाई चारा केवल इस्लाम को माननेवालों के लिए है ) (पेज १४७ पारा ५ सूरा ४ की १०१वि आयत ) .........................क्या यही है अमन का सन्देश देने वाले देने वाले इस्लाम की तस्वीर इसी से प्रेरित होकर ७१२ में मोह्हम्मद बिन कासिम ,१३९८ में तेमूर लंग ने १७३९ में नादिर शाह ने १-१ दिन मै लाखो हिन्दुओ का कत्ल किया ,महमूद गजनवी ने १०००-१०२७ में हिन्दुस्तान मै किये अपने १७ आक्रमणों मै लाखो हिन्दुओ को मोट के घाट उतारा मंदिरों को तोड़ा,व साढ़े ४ लाख सुंदर हिन्दू लड़कियों ओरतो को अफगानिस्तान में गजनी के बाजार मै बेच दिया !गोरी ,गुलाम ,खिलजी ,तुगलक ,लोधी व मुग़ल वंश इसी प्रकार हिन्दुओ को काटते रहे और हिन्दू नारियो की छीना- झपटी करते रहे {द हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया एस टोल्ड बाय इट्स ओवन हिस्तोरिअन्स,लेखक अच् ,अच् एलियार्ड ,जान डावसन }यही स्थिति वर्तमान मै भी है सोमालिया ,सूडान,सर्बिया ,कजाकिस्तान ,अफगानिस्तान ,अल्जीरिया ,सर्बिया ,चेचनिया ,फिलिपींस ,लीबिया ,व अन्य अरब देश आतंकवाद के वर्तमान अड्डे है जिनका सरदार पाकिस्तान है क्या यह विचारणीय प्रश्न नहीं की किस प्रेरणा से इतिहास से वर्तमान तक इक मजहब आतंक का पर्याय बना है ???????????????
ReplyDeleteoho to aap hain theek theek
ReplyDeleteपुस्तकों से प्यार है.बचपन से ही पढने की आदत है.पढता रहा........लगातार कुरान को. जब आखिरी आयत पढ़ी तो पता नहीं क्यूँ ऐसा लगा की इसमें कुछ बातें तो ऐसी हैं जो अल्लाह की कदापि नहीं हो सकती.उदहारण के तौर पर- फिर जब हराम के महीने बीत तो फिर मुशरिकों (गैर मुसलमानों)को जहाँ पाओ क़त्ल करो,और पकड़ो,उन्हें घात लगा कर घेरो,
ReplyDeleteहर जगह उनकी तक में रहो,अगर वो नमाज़ कायम कर लें तो उनको छोड़ दो नहीं तो उनकी उंगलिया और गर्दन काट लो.निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील है.(१०:९:५)
मुझे नहीं लगता की अल्लाह ऐसा हो सकता है.जो सारे जगत का पिता है,जो हमारी रचना, और पालन करने वाला है.उसकी ऐसी सोच कैसे हो सकती है? वो ऐसा सन्देश कैसे भेज सकता है.अल्लाह कैसे कह सकता है aap ne sahi keha .
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ReplyDelete' फिर जब हराम के महीने बीत जाएँ तो " मुशरिकों ' को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो , और पकड़ो , और उन्हें घेरो , और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा' कर लें नमाज़ क़ायम करें और, ज़कात दें , तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि:संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है ।"-सूरा 9 आयत-5
ReplyDeleteइस आयत के सन्दर्भ में-जैसा कि हज़रत मुहम्मद ( सल्ल० ) की जीवनी से स्पष्ट है की मक्का में और मदीना जाने के बाद भी मुशरिक काफ़िर कुरैश , अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) के पीछे पड़े थे । वह आप को सत्य-धर्म इस्लाम को समाप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते रहते । काफ़िर कुरैश ने अल्लाह के रसूल को कभी चैन से बैठने नहीं दिया । वह उनको सदैव सताते ही रहे । इसके लिए वह सदैव लड़ाई की साजिश रचते रहते ।
अल्लाह के रसूल ( सल्ल०) के हिजरत के छटवें साल ज़ीक़दा महीने में आप ( सल्ल० ) सैंकड़ों मुसलमानों के साथ हज के लिए मदीना से मक्का रवाना हुए । लेकिन मुनाफिकों ( यानि कपटचारियों ) ने इसकी ख़बर क़ुरैश को दे दी । क़ुरैश पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्ल० ) को घेरने का कोई मौक़ा हाथ से जाने न देते । इस बार भी वह घात लगाकर रस्ते में बैठ गये । इसकी ख़बर आप ( सल्ल० ) को लग गई । आपने रास्ता बदल दिया और मक्का के पास हुदैबिया कुँए के पास पड़ाव डाला । कुँए के नाम पर इस जगह का नाम हुदैबिया था ।
जब क़ुरैश को पता चला कि मुहम्मद अपने अनुयायी मुसलमानों के साथ मक्का के पास पहुँच चुके हैं और हुदैबिया पर पड़ाव डाले हुए हैं , तो काफ़िरों ने कुछ लोगों को आप की हत्या के लिए हुदैबिया भेजा, लेकिन वे सब हमले से पहले ही मुसलमानों द्वारा पकड़ लिए गये और अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) के सामने लाये गये । लेकिन आपने उन्हें ग़लती का एहसास कराकर माफ़ कर दिया ।
ReplyDeleteउसके बाद लड़ाई-झगड़ा, खून-ख़राबा टालने के लिए हज़रत उस्मान ( रज़ि० ) को क़ुरैश से बात करने के लिए भेजा । लेकिन क़ुरैश ने हज़रत उस्मान ( रज़ि०) को क़ैद कर लिया । उधर हुदैबिया में पड़ाव डाले अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) को ख़बर लगी कि हज़रत उस्मान ( रज़ि० ) क़त्ल कर दिए गये । यह सुनते ही मुस्लमान हज़रत उस्मान ( रज़ि० ) के क़त्ल का बदला लेने के लिये तैयारी करने लगे ।
जब क़ुरैश को पता चला कि मुस्लमान अब मरने-मारने को तैयार हैं और अब युद्ध निश्चित है तो बातचीत के लिये सुहैल बिन अम्र को हज़रत मुहम्मद ( सल्ल० ) के पास हुदैबिया भेजा । सुहैल से मालूम हुआ कि उस्मान ( रज़ि० ) का क़त्ल नहीं हुआ वह क़ुरैश कि क़ैद में हैं । सुहैल ने हज़रत उस्मान ( रज़ि० ) को क़ैद से आज़ाद करने व युद्ध टालने के लिये कुछ शातें पेश कीं ।
[ पहली शर्त थी- इस साल आप सब बिना हज किये लौट जाएँ । अगले साल आएं लेकिन तीन दिन बाद चले जाएँ ।
ReplyDelete[ दूसरी शर्त थी- हम क़ुरैश का कोई आदमी मुस्लमान बन कर यदि आए तो उसे हमें वापस किया जाये । लेकिन यदि कोई मुस्लमान मदीना छोड़कर मक्का में आ जाए, तो हम वापस नहीं करेंगे ।
[ तीसरी शर्त थी- कोई भी क़बीला अपनी मर्ज़ी से क़ुरैश के साथ या मुसलमानों के साथ शामिल हो सकता है ।
[ समझौते में चौथी शर्त थी- कि:- इन शर्तों को मानने के बाद क़ुरैश औए मुसलमान न एक दुसरे पर हमला करेंगे और न ही एक दुसरे के सहयोगी क़बीलों पर हमला करेंगे । यह समझौता 10 साल के लिए हुआ , हुबैदिया समझौते के नाम से जाना जाता है ।
हालाँकि यह शर्तें एक तरफ़ा और अन्यायपूर्ण थीं, फिर भी शांति और सब्र के दूत मुहम्मद ( सल्ल० ) ने इन्हें स्वीकार कर लिया , जिससे शांति स्थापित हो सके ।
लेकिन समझौता होने के दो ही साल बाद बनू-बक्र नामक क़बीले ने जो मक्का के क़ुरैश का सहयोगी था, मुसलमानों के सहयोगी क़बीले खुज़ाआ पर हमला कर दिया । इस हमले में क़ुरैश ने बनू-बक्र क़बीले का साथ दिया ।
खुज़ाआ क़बीले के लोग भाग कर हज़रत मुहम्मद ( सल्ल० ) के पास पहुंचे और इस हमले कि ख़बर दी । पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्ल०) ने शांति के लिए इतना झुक कर समझौता किया था । इसके बाद भी क़ुरैश ने धोखा देकर समझौता तोड़ डाला ।
अब युद्ध एक आवश्यकता थी , धोखा देने वालों को दण्डित करना शांति कि स्थापना के लिए ज़रूरी था । इसी ज़रुरत को देखते हुए अल्लाह कि ओर से सूरा 9 की आयत नाज़िल हुई ।
अब युद्ध एक आवश्यकता थी , धोखा देने वालों को दण्डित करना शांति कि स्थापना के लिए ज़रूरी था । इसी ज़रुरत को देखते हुए अल्लाह कि ओर से सूरा 9 की आयत नाज़िल हुई ।
ReplyDeleteइनके नाज़िल होने पर नबी ( सल्ल० ) ने सूरा 9 की आयतें सुनाने के लिए हज़रत ( रज़ि० ) को मुशरिकों के पास भेजा । हज़रत अली ( रज़ि० ) ने जाकर मुशरिकों से यह कहते हुए किमुसलमानों के लिए अल्लाह का फ़रमान आ चुका है उन को सूरा 9 की यह आयत सुना दी-
( ऐ मुसलमानों ! अब ) ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ से मुशरिकों से, जिन तुम ने अह्द ( यानि समझौता ) कर रखा था, बे-ज़ारी ( और जंग की तैयारी ) है । (1 )
तो ( मुशरिको ! तुम ) ज़मीन में चार महीने चल फिर लो और जान रखो कि तुम को आजिज़ न कर सकोगे और यह भी कि ख़ुदा काफ़िरों को रुसवा करने वाला है । ( 2 )
और हज्जे-अकबर के दिन ख़ुदा और उसके रसूल कि तरफ़ से आगाह किया जाता है कि ख़ुदा मुशरिकों से बेज़ार है और उसका रसूल भी ( उन से दस्तबरदार है ) । पस अगर तुम तौबा कर लो , तो तुम्हारे हक़ में बेहतर है और न मानो ( और ख़ुदा से मुक़ाबला करो ) तो जान रखो कि तुम ख़ुदा को हरा नहीं सकोगे और ( ऐ पैग़म्बर ! ) काफ़िरों को दु:ख देने वाले अज़ाब कि ख़बर सुना दो । ( 3 )
-कुरआन, पारा 10 , सूरा 9 , आयत- 1 ,2 ,3 ,
अली ने मुशरिकों से कह दिया कि " यह अल्लाह का फ़रमान है अब समझैता टूट चुका है और यह तुम्हारे द्वारा तोड़ा गया है इसलिये अब इज़्ज़त के चार महीने बीतने के बाद तुम से जंग ( यानि युद्ध ) है ।
"
समझौता तोड़ कर हमला करने वालों पर जवाबी हमला कर उन्हें कुचल देना मुसलमानों का हक़ बनता था, वह भी मक्के के उन मुशरिकों के विरुद्ध जो मुसलमानों के लिए सदैव से अत्याचारी व आक्रमणकारी थे । इसलिये सर्वोच्च न्यायकर्ता अल्लाह ने पांचवीं आयत का फ़रमान भेजा
इस पांचवी आयत से पहले वाली चौथी आयत " अल-बत्ता, जिन मुशरिकों के साथ तुम ने अह्द किया हो, और उन्होंने तुम्हारा किसी तरह का क़ुसूर न किया हो और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी कि मदद की हो, तो जिस मुद्दत तक उसके साथ अह्द किया हो , उसे पूरा करो ( कि ) ख़ुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है ।"
ReplyDelete- कुरआन, पारा 10 , सूरा 9 , आयत-4
से स्पष्ट है कि जंग का यह एलान उन मुशरिकों के विरुद्ध था जिन्होनें युद्ध के लिए उकसाया, मजबूर किया, उन मुशरिकों के विरुद्ध नहीं जिन्होनें ऐसा नहीं किया । युद्ध का यह एलान आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए था ।
अत: अन्यायियों , अत्याचारियों द्वारा ज़बदस्ती थोपे गये युद्ध से अपने बचाव के लिए किये जाने वाला नहीं कहा जा सकता ।अत्याचारियों और अन्यायियों से अपनी व धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना और युद्ध के लिए सैनिकों को उत्साहित करना धर्म सम्मत है ।
इस पर्चे को छापने व बाँटने वाले लोग क्या यह नहीं जानते कि अत्याचारियों और अन्यायियों के विनाश के लिए ही योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था । क्या यह उपदेश लड़ाई-झगड़ा करने वाला या घृणा फैलाने वाला है? यदि नहीं, तो फिर कुरआन के लिए ऐसा क्यों कहा जाता है?
फिर यह सूरा उस समय मक्का के अत्याचारी मुशरिकों के विरुद्ध उतारी गयी । जो अल्लाह के रसूल के ही भाई-बन्धु क़ुरैश थे । फिर इसे आज के सन्दर्भ में और हिन्दुओं के लिए क्यों लिया जा रहा है ? क्या हिन्दुओं व अन्य ग़ैरमुस्लिमों को उकसाने और उनके मन में मुसलमानों के लिए घृणा भरने तथा इस्लाम को बदनाम करने की घृणित साज़िश नहीं है?