भगवती चरण वोहरा [ जुलाई 1903 - 28 मई 1930] क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। पिता की मौत के बाद वह खुलकर इस लड़ाई में शामिल हो गए। बेहद तंगी के दिनों में भी उन्होंने अपने ससुराल पक्ष से मिले पैसों को आजादी की लड़ाई में खर्च कर दिया। मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। भगत सिंह व भगवती चरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। वोहरा लखनऊ के काकोरी केस, लाहौर षड़यंत्र केस, लाला लाजपत राय को मारने वाले अंग्रेज साजर्ेंट - सांडर्स की हत्या में भी आरोपित थे। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय वोहरा जी शहीद हो गए थे।
सुशीला दीदी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की बेहदसक्रिय सदस्य थीं। लाला लाजपत राय के हत्यारे सॉन्डर्स को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने ही कलकत्ता में भगत सिंह के ठहरने की व्यवस्था की थी। 1 अक्टूबर 1933 को उन्होंने यूरोपीय सार्जेट टेलर को खत्म करने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही। इसके बाद वह अंग्रेजों की आंखों में धूल झौंकने में कामयाब रहीं। आजादी के बाद वह दिल्ली में ही बस गई।
दुर्गा भाभी [7 अक्टूबर 1902- 14 अक्टूबर 1999] भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। 18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से ़यात्रा की थी। बेहद निडर और साहसी दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे दुर्गा भाभी ने ही लाकर उनको दी थी। उस समय भी दुर्गा भाभी उनके साथ ही थीं। 14 अक्टूबर 1999 को 97 वर्ष की आयु में उनका निधन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में हो गया।
अशफाक उल्ला खान (1900-1927) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। अशफाक उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे।
उधम सिंह का [26 दिसंबर 1899- 31 जुलाई 1940]1919 में आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। वह 13 अप्रैल, 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। वह इसके दोषी जनरल डायर को इसका सबक सिखाना चाहते थे। इसके चलते उन्हें काफी लंबा इंतजार करना पड़ा। सन 1934 में वह डायर का पीछा करते हुए लंदन पहुंचे। 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक के माइकल ओ डायर भी मौजूद था। उधम सिंह ने उसको वहीं दो गोलियां मारकर ढेर कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर उनके ऊपर केस चलाया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
काला सिंह [12 फरवरी 1882- 12 अगस्त, 1915] जगतपुरा निवासी सुरमुख सिंह के घर 12 फरवरी, 1882 को पैदा हुए थे। अंग्रेजी हकूमत की गुलामी बर्दाश्त न होने पर काला सिंह ने फौज की नौकरी छोड़ दी और गदर पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने कई अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतारने के साथ-साथ उनके कई मुखबिरों को भी मार दिया। इस पर अंग्रेज हकूमत ने उसे पकड़ लिया और 12 अगस्त, 1915 को आतंकी करार देकर फांसी के फंदे पर लटका दिया।
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