मित्रों!जब पहली बार अन्ना ने जंतर-मंतर पर लोकपाल ले लिए अनशन किया था,तभी से मै हमेशा उनके समर्थन में जाता रहा.उसके बाद रामलीला मैदान हो या अन्ना के जेल के अन्दर तीन दिन का अनशन.मै अपने नौकरी से छुट्टी लेकर रात दिन उनके समर्थन में खड़ा रहता था.मै अन्ना के साथ केजरीवाल के बातों से भी बहुत प्रभावित था.रामलीला मैदान में एक बुजुर्ग व्यक्ति जो हमेशा गाँधी जी की वेश भूषा में आते थे, ने मुझे बताया था की अरविन्द एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति प्रतीत होता है,मुझे लगता है की अपना स्वार्थ पूरा करने के बाद ये अन्ना जी को छोड़ देगा.उस समय उसकी बात मुझे बहुत बुरी लगी थी और मैंने उनसे बाद विवाद भी किया.अंततः उनकी बात अक्षरशः सत्य हुई,अरविन्द ने अन्ना का उसे किया और खुद को पापुलर,और एक नयी पार्टी बना कर खुद की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लग गया.
आज मै उन बुजुर्ग को याद कर रहा हूँ,और किसी तरह अगर मेरी बात उनतक पहुच जाये तो,क्षमा मांगना चाहता हूँ अपने उस नासमझी के लिए.
आखिर तजुर्बा बोलता है,अरविन्द की अन्ना चापलूसी समजने में हमें इतने दिन लग गए और उन्होंने प्रथम दृष्टया ही पहचान लिया.
heera asli hai ya nakli iski parakh jauhari hi kar sakta hai, aur ye yogyta anubhav se hi aati hai... jai ho!
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