स्वागतम ! सोशल नेटवर्किंग का प्रयोग राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए करें.

Free HTML Codes

अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Wednesday, November 30, 2011

मै तो बस कविता लिखता

मै नहीं चाहता अभिनन्दन गाऊं झूठे दरबारों का
संसद में बैठे चोरों का,सत्ता के पहरेदारों का

मै नहीं चाहता गीत लिखूं,प्रेयसि की कंगन-बाली का
उसके आखों के काजल का,उसके अधरों की लाली का

मै नहीं चाहता झूठ लिख,कवियों का एक दिनमान बनूँ
धनिकों का गुण गा-गा करके,लोगों में एक सम्मान बनूँ

मैंने तो कलम उठाई है,भारत की व्यथा बताने को
मजदूर-किसानो के आशूं की,सबको कथा सुनाने को

लिखने को सम्मान हमारे सरहद के रखवालों का
भगत सिंह,अशफाक,उधम से,देशभक्त मतवालों का

मै तो बस कविता लिखता,गंगा के निर्मल पानी पर
जो द्रास-बटालिक में सोये,उनको बिंदास जवानी पर

-राहुल पंडित

2 comments:

  1. बेहतरीन आपने बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया है।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete