संसद में बैठे चोरों का,सत्ता के पहरेदारों का
मै नहीं चाहता गीत लिखूं,प्रेयसि की कंगन-बाली का
उसके आखों के काजल का,उसके अधरों की लाली का
मै नहीं चाहता झूठ लिख,कवियों का एक दिनमान बनूँ
धनिकों का गुण गा-गा करके,लोगों में एक सम्मान बनूँ
मैंने तो कलम उठाई है,भारत की व्यथा बताने को
मजदूर-किसानो के आशूं की,सबको कथा सुनाने को
लिखने को सम्मान हमारे सरहद के रखवालों का
भगत सिंह,अशफाक,उधम से,देशभक्त मतवालों का
मै तो बस कविता लिखता,गंगा के निर्मल पानी पर
जो द्रास-बटालिक में सोये,उनको बिंदास जवानी पर
-राहुल पंडित
बेहतरीन आपने बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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