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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Monday, August 23, 2010

कश्मीर में इतिहास खुद को दोहराने वाला है...


एक जमाना था की पूरा कश्मीर पंडितों से भरा पड़ा था.फिर इस्लाम की ऐसी आंधी चली की कश्मीरी पंडित इतिहास बन गए.आपने ही देश में शरणार्थी बन गए.इस घटना के दशक पुरे होने को हैं की इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है.मुसलमानों का फरमान "सिक्खों मुसलमान बनो या कश्मीर छोडो."उस समय तथाकथित हमारे धर्मनिरपेक्ष लोगों ने जो किया था..वाही आज फिर कर रहे हैं.जब आप उस समय पंडितों को नहीं बचा पाए और अस्वासन देते रहे...देखते-देखते पंडित...शरणार्थी बन गए..आज फिर वाही हो रहा है..वाही राग अलापे जा रहे हैं.अरे मैकाले के औलादों...मुह से कहने से कुछ नहीं होगा...तुम कहते रहोगे और हमारे सिक्ख भाई..........और फिर १० साल बाद वो कश्मीरी पंडितों की तरह शरणार्थी कश्मीरी सिक्ख बन जायेंगे.
तुम क्यूँ भूल जाते हो ये मुसलमान हैं...
जो काम ये कर रहे हैं...इनके अल्लाह का आदेश है.
यही इनका अधर्म(धर्म) है.ये तो ऐसा ही करेंगे...कश्मीर को ४ सालों के लिए सेना के हवाले करो....न तो आतंकवाद रहेगा और नहीं दुबारा से ये नौबत आएगी.
लेकिन मुझे पता है...तुम ऐसा नहीं करोगे नहीं तो तुम्हारा करोणों आतंकवादियो का वोट बैंक ख़तम हो जायेगा.
मेरे प्यारे हिन्दू और सिक्ख भाईओं,इतिहास को खुद से दोहराने से रोको...जरुरत पड़े तो कश्मीर चलो.जब मुसलमान अमेरिकी सेना से लड़ने के लिए,आपने आतंकवादी भाईओं को बचाने के लिए अफगानिस्तान(दुसरे देश)में जा सकते हैं तो तुम खुद के भाईओं को बचाने के लिए अपन देश में ही क्यूँ नहीं लड़ सकते..ये तो बेगुनाह हैं.ये तो शांति से रह रहे हैं.इन्होने धर्म के नाम पर कभी खून नहीं बहाए..इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है.इनके रक्षा से ही हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हो सकेगी...आओ और हम....

कितनी बार छले जायेंगे,कपट भरे विश्वाशों में?
कितने करगिल भूलेंगे,अनगित शांति प्रयासों में?
फसल उगेगी बारूदी,कब तक केशर की क्यारी में?
बेगुनाह कब तक मरेंगे,रोज यहाँ बमबारी में?
मौन शिकारों में मातम,कब तक होगा अरमानो का?
घाटी में तांडव होगा,कब तक खूनी शैतानो का?


अब मत सोना.ये विश्राम करने का समय नहीं है.विश्राम करोगे तो विनाश की तरफ जाओगे.विश्रांति हमारे लिए नहीं है.हमें तो लोहा लेना है उन मुट्ठी भर लोगों से जो हमारे ही देश से हमें बेदखल कर देना चाहते हैं.और हमारे उन जयचंदी प्रवृत्ति के भाईओं से भी जो तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारा लहू पी रहे हैं.

चिंतको, चिंतन की तलवार गढ़ों रे
ऋषिओं,उद्दीपन मंत्र पढो रे
योगिओं,जागो जीवन की ओर बढ़ो रे
बंदूकों पर अपना अलोक मढो रे
है जहाँ कही भी तेज़,हमें पाना है
रण में समस्त भारत को ले जाना है
पर्वतपति को आमूल डोलना होगा
अब शंकर को ध्वन्षक नयन खोलना होगा.

5 comments:

  1. रक्षाबन्धन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति---आभार

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  3. Rahulji,

    Kuch baat hum me Aisi ki hasti mitati Nahi hamari. Sadiyon raha hai Dushman Jamana Hamara.
    --
    Bahut Acchi prastuti mitra..
    Jay Hind,, Jai Hindu

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  4. जय हिन्द जय भारत।।।

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