आखिर क्या है केजरीवाल और कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मालिक की दोस्ती का राज?
केजरीवाल की यासीन मलिक से दोस्ती लगभग वर्षों पुरानी है। केजरीवाल जब से नौकरी छोड़कर एनजीओ चला रहे हैं तभी से दोनों की दोस्ती जगविदित है।यासीन मालिक घाटी में केजरीवाल के एनजीओ का काम देखता था।(हलाकि तब उसकी पहचान एक अलगाववादी के रूप में नहीं थी) बाद में यासीन एक बड़ा अलगाववादी नेता बन गया और कश्मीर में रेफरेंडम कराकर कश्मीर का विलय पाकिस्तान में कराने की मांग करने लगा।हलाकि यह असम्बैधानिक था इसलिए इन मांगों को भारत की सभी सरकारों द्वारा ठुकरा दिया गया।भारत का सबिधान एक संघीय व्यवस्था को ही सपोर्ट करता है इसलिए चुनाव के आलावा ऐसा कोई अलग विधान नहीं है जो किसी भी राज्य सरकार को रेफरेंडम कराने का अधिकार देता हो।केजरी-यासीन की दोस्ती की प्रगाढ़ता उस समय देखने को मिली जब यासीन मालिक ने खुलेआम दिल्ली के 14 पर्सेंट मुसलमानो को आम आदमी पार्टी को वोट देने को कहा। इसका फायदा केजरीवाल को हुआ और बीजेपी पिछले चुनावों से ज्यादा वोट पाने के बावजूद एकजुट मुस्लिम वोटों की वज़ह से केजरीवाल ने बम्पर जीत दर्ज़ की।दिल्ली के साथ पाकिस्तान में भी आम आदमी पार्टी का जीत का जश्न मना जिसकी ख़बरें नेशनल मिडिया में भी आई।ये यासीन का ही प्रभाव था की आम आदमी पार्टी के जीत के जश्न में केवल हरे गुब्बारों और हरे गुलाल का ही प्रयोग किया गया।(सत्यापन के लिए गूगल पर जीत की जश्न की तस्वीरें सर्च करें)
रेफरेंडम के पीछे क्या है केजरी की मंसा?
1. केजरी दिल्ली में संबिधान के विरुद्ध दिल्ली में रेफरेंडम कराकर कश्मीर और पूर्वोत्तर के अलगाववादियों की उन मांगों को बल देना चाहते हैं जिसमे अलगाववादी रेफरेंडम के बेस पर अलग देश की मांग कर रहे हैं।अभी तक भारत सरकारें ऐसी मांगो को असम्बैधानिक बताकर ख़ारिज करती रही हैं लेकिन एक बार दिल्ली में ऐसा हो जाने पर सरकार के लिए मुश्किल हो जायेगा।इस तरह यासीन मालिक को दिये गए वादे को केजरी निभाने में केजरी सफल हो जायेंगे।
2. केजरीवाल ने दिल्ली से बहुत बड़े बड़े वादे किये जिनका पूरा होना नामुमकिन है।दिल्ली का टोटल बजट 41 हज़ार करोड़ रुपये का है और वादों को पूरा करने के लिए प्रतिवर्ष ढाई लाख करोड़ रुपये की जरुरत है।इस तरह संबिधान विरुद्ध कदम उठाकर जनता को ये बताना चाहते हैं की मैं करना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन मोदी ऐसा करने नहीं दे रहे हैं।चुकी दिल्ली की 70 पर्सेंट से अधिक जनता ऐसी है जो पढ़ी लिखी तो है लेकिन इतना गहराई में जाकर नहीं सोच सकती इस तरह खुद को केंद्र सरकार के साजिशों का शिकार बताकर काम न कर पाने का एक्सयूज मिल जायेगा।
3. केजरीवाल इस समय पार्टी के भीतर मचे हुए घमासान से त्रस्त हैं।जैसा की पार्टी के चार सांसदों में से तीन ने पार्टी हाईकमान पर हिटलरशाही का आरोप लगाकर मोर्चा खोला हुआ है,पंजाब चुनाव से पहले केजरीवाल की उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है।ऐसी स्थिति में केजरी कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे जनता का ध्यान पार्टी में मचे घमासान से हट जाए।